क्या दिल्ली हिंसा को रोका नहीं जा सकता था?
दिल्ली में बीते दिनों हिंसा देखने को मिली और उस हिंसा में भारी संख्या में लोगों की जाने गई।
नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बीते दिनों जिस तरह से हिंसा देखने को मिली और उस हिंसा में भारी संख्या में लोगों की जाने गई वो न सिर्फ किसी देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है बल्कि मानवता को भी शर्मसार कर देने वाली घटना है। आपको वो तस्वीर तो याद होगी जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने बेहद खास दोस्त अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को अहमदाबाद में दिखा रहे थे। जिसमें पीएम मोदी खास मेहमान को साबरमती आश्रम में बापू के तीन बेहद खास बंदरों से मुलाकात करवा रहे थे।
जी हां अबतक तो आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। बुरा न देखों, बुरा मत सुनो, और बुरा मत बोलो। ठीक है? अब बात यहां से समझिए कि जब नागरिकता संशोधन कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ और उसके बाद राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद कानून की शक्ल में अख्तियार हुआ। जिसके बाद सरकार ने अधिसूचना जारी की।
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इन सब के बीच दिल्ली चुनाव की दस्तक और उस दस्तक में बापू के बंदरों की बातों को दर किनार कर देने वाले बयानों की बौछार, मसलन अनुराग ठाकुर के बुरे बोल देश के गद्दारों को गोली मारो….के नारे…शाहिन बाग से लेकर चांदबाग तक के एरिया में बंदूक का लहराव क्या इतना काफी नहीं था कि देश के मिजाज को समझा जाए और किसी भी अप्रीय घटना से निपटने के लिए तैयार रहा जाए। बावजूद इसके अगर दिल्ली में जाफराबाद होता है, चांद बाग होता है और मौजपुर होता है तो सीधे तौर पर इसकी जवाबदेही केंद्रीय सरकार और उसकी प्रशासनिक व्यवस्था की होती है।