क्या जाति पर टिकी है बिहार की राजनीति
फिलहाल देश में अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है।
वैसे तो हमारे देश भारत में जातिवाद और छुआछूत बहुत ज्यादा है। सदियों से चली आ रही जातिवाद की परंपरा की नींव देश में बहुत मजबूत है। लेकिन कहा जाता है कि जब से देश में राजनैतिक सत्ता शुरू हुई है। जातिवाद एक तरीके से खत्म होता जा रहा है। फिलहाल देश में अभी भी कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पर जातिवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। उनमें ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग जातिवाद और छुआछूत को पूर्वजों की धरोहर समझकर उसे अपना रहे हैं। अगर हम बात करें कि जातिवाद राजनीति पर हावी हो रहा है। तो मौजूदा दौर में ये एक अचंभा सा लगता है कि किस तरह राजनीति में अभी भी जातिवाद को अहमियत दी जा रही है। लेकिन क्या आपने सुना है? कि देश में एक ऐसा भी राज्य है जहां जाति देखकर ही चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया जाता है।
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जी हां हम बात कर रहे हैं भारत के 29 राज्यों में से एक राज्य बिहार की। जहां चुनाव लड़ने के लिए जाति देखकर उम्मीदवार को टिकट दिया जाता है। हालांकि जातीय जनगणना के लिए विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजने वाले बिहार की राजनीति में जातियों के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। सूचना के मुताबिक बिहार में 200 से ज्यादा जातियां हैं। जिनमें से कुल 15-20 जातियां ही हैं। जिन्हें राजनीति में अपना भाग्य आजमाने का मौका मिलता है। और इन्हीं के बीच टिकट की महामारी को लेकर राजनीतिक सियासत चलती है। इसके अलावा बाकी की जातियां सिर्फ मतदाता बनकर इनका सहयोग करती हैं।
आपको बता दें कि इस मुद्दे पर बात करते हुए चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर के प्रमुख राजीव कुमार ने कहा कि बिहार को लेकर लोगों को नजरिया बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अगर चुनाव में जाति को ही सर्वोपरि स्थान दिया जाता तो श्रीबाबू, कर्पूरी ठाकुर और नीतीश को इतनी ज्यादा ख्याति प्राप्त नहीं होती। क्योंकि ये तीनों नेता शुरू से ही जाति का प्रतिनिधित्व करते आए हैं। और इन्होंने जिन जातियों का प्रतिनिधित्व किया है उनकी जातियां बहुत कम हैं। उन्होंने कहा कि लालू प्रसाद को इसलिए कामयाबी मिल गई क्योंकि जातियों का समीकरण बनाया था। लेकिन जब वोटरों की मानसिकता बदली तो उन्हें भी आसमान की ऊंचाई छूते देर नहीं लगी।
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बिहार की राजनीति का यह एक कड़वा सच है कि 200 से ज्यादा जातियों में से सिर्फ 20 ही जातियां संसद तक पहुंच सकी हैं। बाकी को सांसद बनने तक का मौका नहीं मिला। वहीं अगर हम बात करें लोकसभा के हुए पिछले चुनाव की। तो बड़े-बड़े राजनीतिक दलों ने सिर्फ 21 जातियों के उम्मीदवारों को ही टिकट के लायक समझा। फिलहाल बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव की डंका बज चुकी है। जिसके चलते सभी पार्टियों ने एक-दूसरे पर किसी न किसी मुद्दे को लेकर तंज कसने भी शुरू कर दिए हैं। हालांकि ये तो आने वाले चुनाव ही बताएंगे कि क्या हर बार की तरह इस बार भी राज्य में जातिवाद पर सियासत होती है या नहीं